आज फिर जरूरत है एक चिपको आंदोलन की
अर्जुन सिंह
पौड़ी। 26 मार्च करीब 49 साल पहले उत्तराखंड में एक आंदोलन की शुरुआत हुई थी, 1974 में आज ही के दिन चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इस आंदोलन में महिलाएं और पुरुष पेड़ से लिपटकर पेड़ों की रक्षा करते थे। जिसे नाम दिया गया था चिपको आंदोलन। आपको बतादें कि इस आंदोलन की शुरुआत चंडीप्रसाद भट्ट और गौरा देवी की ओर से की गई थी और भारत के प्रसिद्ध सुंदरलाल बहुगुणा ने आगे इसका नेतृत्व किया। इस आंदोलन में पेड़ों को काटने से बचने के लिए गांव के लोग पेड़ से चिपक जाते थे, इसी वजह से इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा था।
चिपको आंदोलन की शुरुआत प्रदेश के चमोली जिले में गोपेश्वर नाम के एक स्थान पर की गई थी। आंदोलन साल 1972 में शुरु हुई जंगलों की अंधाधुंध और अवैध कटाई को रोकने के लिए शुरू किया गया. इस आंदोलन में महिलाओं का भी खास योगदान रहा और इस दौरान कई नारे भी मशहूर हुए और आंदोलन का हिस्सा बने।
इस आंदोलन में वनों की कटाई को रोकने के लिए गांव के पुरुष और महिलाएं पेड़ों से लिपट जाते थे और ठेकेदारों को पेड़ नहीं काटने दिया जाता था। जिस समय यह आंदोलन चल रहा था, उस समय केंद्र की राजनीति में भी पर्यावरण एक एजेंडा बन गया थाय इस आन्दोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया।
बता दें कि इस अधिनियम के तहत वन की रक्षा करना और पर्यावरण को जीवित करना है। कहा जाता है कि चिपको आंदोलन की वजह से साल 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक विधेयक बनाया था। इस विधेयक में हिमालयी क्षेत्रों के वनों को काटने पर 15 सालों का प्रतिबंध लगा दिया था। चिपको आंदोलन ना सिर्फ उत्तराखंड में बल्कि पूरे देश में फैल गया था और इसका असर दिखने लगा था। आज के परिपेक्ष में समाजसेवी विनोद जोशी ने जंगल की घटती तादात पर चिंता जताई तो पर्यावरण चिंतक गीता रेखाडी “कहती है कि आज एक और चिपको आंदोलन की जरूरत है।”